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त्योहारों रीति रिवाजों वाली डायरी# लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -07-Nov-2022

वट सावित्री
मिथिलांचल का एक प्रसिद्ध त्योहार बरसाईत (वट सावित्री ) की कथा को हिंदी में अनुवादित कर रही हूँ।

प्राचीन काल में मिथिला के एक गाँव में एक ब्राह्मण निवास करता था। उसके सात पुत्र थे। उसकी पत्नी प्रतिदिन पूरे परिवार के लिए भोजन बनाते समय जब भात (चावल) पतीले में बनाती तो गरम माड़ (चावल का पानी) वहीं अपनी रसोई के पीछे एक बिल में डाल देती। 

उस बिल में एक नाग नागिन का जोड़ा निवास करता था। नागिन के जितने भी अंडे होते वो गरम माड़ पड़ने के  कारण नष्ट हो जाते। जिससे साँप के बच्चे जन्म लेने अर्थात अंडे से बाहर आने से पहले ही मर जाते। 

नाग नागिन परेशान हो गए थे दोनों ने एक दिन आपस में विचार विमर्श किया कि जिस तरह यह ब्राह्मणी हमें निःसन्तान कर रही है और देखो वो अपने बच्चों के साथ कितनी खुश है। 

हमारे अंडों पर गरम माड़ डालकर नष्ट कर देती है और अपने बच्चों को स्वादिष्ट भोजन कराती है।

नाग नागिन बहुत गुस्से में थे और वो ब्राह्मणी से बदला लेना चाहते थे। नागिन ने नाग से कहा आप मेरा साथ दीजियेगा तो मैं भी इस ब्राह्मणी को भी निःसन्तान कर दूँगी। 

यह विचार कर दोनों उस बिल से निकल गाँव के वट वृक्ष के पास शरण लेने गए। वट वृक्ष के पास में ही एक बिल था अब वो नाग नागिन वहीं रहने लगे। 
  
ब्राह्मण के पुत्र विवाह योग्य हो गए थे। जब सबसे बड़े बेटे का विवाह हुआ और वो ससुराल से वापस लौट रहा था अपनी दुल्हन के साथ। जेठ का महीना और चिलचिलाती धूप में चलते चलते जब थक गया तो उसी वट वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया जहाँ वो नाग नागिन निवास करते थे। दुल्हन वहीं पालकी में बैठी थी और पालकी वाले भी थोड़ी देर सुस्ताने के लिए रुक गऐ। 

नागिन वृक्ष पर तने से लिपटी देख रही थी। उसने मौके का लाभ उठा ब्रहाम्ण के बड़े पुत्र को डस लिया। और  तुरंत वो ब्राह्मण पुत्र वहीं निढा़ल हो गया। पालकी वालों ने जब देखा  सब डर गए कुछ समझ नहीं आया तो उसका मृत शरीर पालकी जिसमें उसकी दुल्हन बैठी थी रख दिया। वो दुल्हन ससुराल आने से पहले ही विधवा हो गई। 

गाँव वाले और ब्राहम्ण ब्राहम्णी निस्तब्ध हो गए... ऐसा पहली बार हुआ था उस गाँव में जब दुल्हन अपने मृत पति के साथ ससुराल पहुँची हो। माता पिता पुत्र वियोग में बेसुध हो गए। पर अपनी विधवा पुत्र वधु और छहों पुत्रों के लिए तो ब्राह्मण ब्रहाम्णी को हिम्मत करनी ही पड़ी। एक पुत्र के वियोग में बाकि पुत्रों को तो नहीं छोड़ सकते थे। 
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कविता झा'काव्या'
# लेखनी
# लेखनी त्योहारों रीति-रिवाजों वाली प्रतियोगिता

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3 Comments

Radhika

09-Mar-2023 01:06 PM

Nice

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shweta soni

04-Mar-2023 09:29 PM

बहुत सुंदर

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अदिति झा

20-Nov-2022 06:17 PM

शानदार

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